Thursday, December 20, 2007

story

आकाश में दो चार ग्रहों को लेकर, जब तब ज्योतिष शास्त्री हो हल्ला मचाते रहते हैं, कि अब प्रलय आई-अब जलजला आयाआज से ३९०६ वर्ष पहले मार्च को कोरी आंखों से दिखने वाले सारे ग्रह, बुध, मंगल, शनि ब्रह्स्पति और चाँद भी इतने पास दिख रहे थे कि हाथ बढाओ तो हथेली में समा जाएँयह वो वक्त था जब आर्य भारत में फैलते जा रहे थे और हड़प्पा सभ्यता सिमटती जा रही थी...
चैत की रात आज जाड़ों की तरह काटे नहीं कट रही थीतारों भरे आकाश की रोशनी में, नदी आकाश गंगा से जैसे मुकाबला कर रही थी, कहना मुश्किल था की नदी आकाश गंगा का जमीन पर अक्स है या आकाश गंगा आसमान में नदी का आइनापर आज जैसे यह सब कुछ काट खाने को दौड़ता है, काली अपने तीन पिल्लों के साथ पुआल में ऐसे सोरही थी जैसे कुछ होने ही वाला हो!
'यूं तो मरी भूंक भूंक कर आसमान सर पर उठा लेती है ज़रा सी आहट पर' मंगली मन ही मन बुदाबुदाई
काली नींद में कुनामुनायी और करवट बदल कर सो गयीहाय इसे भी जरा सी चिंता नहीं, अभी पौ फटते ही पुजारी आएंगे और उसका जो आख़िरी सहारा है उसे भी छीन ले जायेंगेमंगली ने मन पक्का कर लिया कि प्रलय आती है तो आये काली की बलि नहीं चढ़ने देगीसुरजा को तो निर्दईओं ने खड़े खड़े ठौर कर दियाआख़िर उसने ऐसा क्या गलत कहा था, सोचते हुए वह काला दिन उसकी नजरों के सामने घूम गया...
...अभी दिन चढ़ ही रहा था कि सूरज अचानक अपनी ताव खोने लगा, ऊपर आसमान में दूर-दूर तक कहीं बादलों का भी अता पता थाकाली जरा संभल कर ज़रा दूर रह कर भी चलो', आज नौवां महीना पूरा होगया है अगली बार दर्द उठा तो में खुद को संभाल नहीं पाऊँगी मंगली ने सोचा। 'दाई अम्मा को लेकर सुरजा को अभी तक आजाना चाहिए था' काली उसका हाथ पकड़ कर नीम के पेड़ों की और खींचने लगी 'धीरे पकड़ काली तेरे दांत तो तीर से पेने हैं! इस हालत में जितना तेज चल सकती हूँ चल तो रहीं हूँ '। नीम तक पहुँचाते पहुँचाते अँधेरा गहराने लगा था, और दर्द की एक तेज लहर उठी तो मंगली समझ गयी कि अब वक्त आगया हैपेड़ के तने का सहारा लेकर वह उकंड़ू हो कर बैठ गयी, मन को पक्का कर लिया के चाहे जितना भी दर्द क्यों हो अपना होश सम्भालना होगा। 'काली तू तो मेरे साथ है ' काली उसके पसीने से सराबोर चेहरे को चाटने लगीजमीन पर पत्तों के बीच से छान कर आरही रौशनी सूरज के बिम्ब बना रही थी पर हमेशा कि तरह वे गोल नहीं थे बल्कि आधे चाँद कि तरहा दिख रहे थेजैसे चारों ओर जमीन पर हजारों चांद उकेर दिए हो किसीनेदर्द की लहरें तेज से तेज होती जारहीं थी और दूसरी तरफ सूरज के अक्स अब दूज के चाँद जैसे हो चले थे। 'हाय मेरी अम्मा तुम कहाँ छोड़ कर चली गयी' दातों को भींच कर मंगली ने पूरी साँस भर कर जोर लगाया, काली पास सिमट आयी तो उसकी झबरी गर्दन को बाहों मी कस कर भर लियापरिंदे चह चहाते हुए पेड़ों पर लॉट आये थे जैसे की शाम ढल आयी होपेर बैठे सारे मित्ठ एक साथ टें-टे कर रहे थे जैसे मंगली को ढाडस बंधा रहे हों की 'डर मत हम सब तेरे साथ हैंअगर लड़की हुई तो उसका नाम काली रखूँगी मंगली ने मन ही मन तय कियाअगली दर्द की तीस में लगा की बस अब सांस ही दुबारा नहीं आएगी जैसे ' काली, मेरी अम्मा बचा लो मुझे, काली तेरे लिए उन का गदेला बनाऊँगी अगली सर्दी के लिएएक बार सारी रही बची ताकत जुटा कर जोर लगाया तो सर बाहर आगया, ऊपर आसमान में पूरा सूरज काला पड़ गया था लेकिन एक तरफ हीरे जैसी कनी जगमगाने लगी उसके चारों ओर दूधिया रोशनी की धाराएँ फूट पड़ी हों जैसेसूरज के घेरे पर बीच बीच से लाल लाल लपटें भी उठतीं थीं और सिमट जातीं थी पल पल मेंबच्चा इसी बीच पूरा बाहर आगया, काली कब हाथों से छूट कर बच्चे को चाट कर साफ करने लगी मंगली को पता ही नहीं चला। 'संभाल कर अपने दांत बचाना' काली ने अपने मुँह मी उठाकर बच्चे को छाती पर रखा तो देखा कि लड़का है, 'मेरी "छोटी काली" आगई काली और तू ही अब इसकी धायम्मा हैइसी बीच सूरज मैं फिर से हीरे कि कानी चमकी कुछ पलों में जमीन पर फिर दूज के चाँद जैसी हजारों अक्स बनने लगे और बढ़ कर आधे चाँद जैसी होने लगेजमीन पर काली छायाएँ लहरा कर रेंगने लगीं पहले तो काली उनपर दौड़ दौड़ कर भूँकी पर जब देखा कि कोइ ख़तरा नहीं है तो, पहरा देने कि मुद्रा में तन कर बैठ गयी, बच्चा अपने छोटे-छोट कोमल होंठो से चुकर चुकर ढूध पीने लगा, दर्द और थकान से निढ़ाल मंगली को कब नींद आगी पता ही नहीं चला
'मंगली मंगली' सुरजा कि पुकार कानों में पड़ी तो मंगली ने चौंक कर आँखें खोलीं, देखा तो, सुरजा हंसिये को आग पर तपा रहा है, पूछा 'दाई अम्मा नहीं आयी'? 'बताता हूँ', गरम हंसिये कि धार से नाल को काट कर सुरजा ने बच्चे को उठा लिया 'कितना सलोना है क्या नाम तय किया है'? 'काली' मंगली ने गर्व से कहासुरजा हरिया को गोदी में उठा कर एक अंगा को टटोह-टटोह कर देखने लगा, सब ठीक ठाक देख कर राहत की सांस ली, 'पर पता कैसे चलेगा की किस काली को पुकारा जा रहा है'? मंगली बोली इसे "कालिका" बुलायेंगे'। इस पर सुरजा बोला 'में तो "छोटी काली" बुलाऊंगा तू तो चंगी है मंगली'। 'अरे आज तो मंगली ने दाई का काम आर दिखाया है' मंगली ने काली के जबडे को नीची से सहलाते हुए कहा तो काली जीभ निकल कर, पूंछ को जोरों से हिलाने लगीकालिका टुकुर-टुकुर कभी सुरजा तो कभी मंगली और काली की पूंछ को देखे जा रही था, सुरजा ने जीभा निकल कर कालिका को बिरया 'अच्छा अब तू आगई है मेरे और मंगली के बीच'। तो कालिका ने भी जीभ निकाल कर मुँह बनाया, 'अरे वाह तेरी कालिका तो बड़ी चन्ट है' कह कर सुरजा ने अपनी नाक से काली के पेट में गुदगुदी की तो,दाढी चुभने से बुक्का फाड़ कर कालिका रो दी और कस कर उसके बाल पकड़ लिएतेरी तरह बड़ा 'लड़न्की निकलेगी काली' कह कर वापस दे दी कालिका मंगली को। 'हाँ तू भी कहाँ रह गया था मैं अकेली रह गयी थी, वह तो बस अगर काली ने मेरा साथ दिया होता तो...' मंगली का गला भर आया शिक़ायत और बेबसी दोनो थीं उसकी आवाज में
सुरजा ने मंगली को प्यार से सहलाते हुए कहा 'जब से ये गोरी चमडी वाले सिंध पार से आये हैं हमारी तो जिंदगी ही दूभर होती जारही है, हमने तो इन्हें बसने के लिए जमीन दी पर ये तो सर पर चढ़ कर बैठते जा रहे हैं'। मुझे तो अब तुम्हारे शक पर यकीन होने लगा है कि अपने मुखिया को इन्होने जहर देकर मारा था'! कल ही मुझे हड़प्पा से आया एक व्यापारी मिला था कह रहा था कि सारा शहर इन आर्यों ने तबाह कर दिया बाँध को तोड़ कर सब कुछ बहा दिया। 'क्या कहते हो'? मंगली को यकीन नहीं हो रहा था, 'पशुपतिनाथ ने कुछ नहीं किया'? 'वह क्या करेगा, दो चार घोड़े दे कर खरीद लिया होगा उसे भी इन्द्र नेसुरजा कि आवाज में बेबसी उतर आई थी। 'जब तुमने कहा था तो मुझे यकीन नहीं आया था कि पशुपतिनाथ ने तुम्हे इन्द्र के पास जबरन भेजने कि कोशिश कि थी'। पर इन्द्र के साथ हमारे पुजारी भी लम्पट हो गयी हैं चन्द गायों और घोडों के लिए'। गुस्से से सुरजा कि आंखे लाल हो उठीं थी। 'ज़रा धीरे बोलो कालिका सो गयी है' सुरजा के हाथ को धीरे से भींचते हुए मंगली बोली। 'मैं तो तब गर्भ से हूँ कह कर बच निकली पर वह जहरीली नीली आंखों और कामी चाँद सी रंगत वाला इन्द्र फिर भी जबरदस्ती मुझे उठा ले जाने पर उतारू था, वो तो इतने सारे लोगों कर सामने पशुपतिनाथ कि हिम्मत नहीं हुई मुझ जैसी नर्तकी से जिद करने की'। 'पशुपतिनाथ की भी हिम्मत नहीं है "जगदम्बा की प्यारी" मेरी मंगली से हुज्जत करने की' सुरजा गर्व से बोला। ' मेरे सुरजा के त्रिफली बरछे से तो दर्जन भर बाघ गेंडे भी दुम दबा कर भाग जाते हैं इस इन्द्र और उसके जरखरीद पशुपति की क्या बिसात! मंगली ने सुरजा के हाथों को अपनी गालों पर रखते हुए कहा। 'पर मेरा बघेरा अपनी मंगली को इस हॉल में अकेला छोड़ कर कहाँ किस गोरी के बहकाने पर कहाँ अटक गया था'?
'कैसी बात करती है तू भी, नदी पहुँचने पर कोइ भी नाविक इस सूर्य ग्रहण में नाव खोलने को तैयार नहीं था, सब के सब अब उन आर्यों के उल्टे-सीधे मंत्रों के चक्कर में आने लगे हैं ऐसा लगता हैसूर्य के आगे चन्द्रमा के आजाने से सूर्य ढँक जाता है तो सूर्य ग्रहण होता है यह हमारे नाविक हमेशा से जानते हैं, फिर भी बदबू मारते घुटमुंडे वेदपाठिओं को लोग डर से दान देने लगे हैंखैर फिर में तीन क्रोस चल कर पहाड़ी के मोड़ के बाद नदी तैर कर पार की, बस्ती पहुंचा तो एक पल तो ऐसा लगा की सब लोग पता नहीं कहाँ भाग गए हैं, दाई अम्मा के घर की सारी खिड़कियाँ दरवाजे सब ऐसे बंद थे जैसे कोई भूत दहाड़े घर में घुस आएंगेदेर तक खट खटाने के बाद मुश्किल से दरवाजा खुला, तो अम्मा थीं बोलीं "यहाँ क्या कर रहा है ऐसे विपत्त काल में सुरजा, और मंगली को कहाँ छोड़ आया"? मंगली तो नदी पार के खेतों पर है, पर यहाँ इसी क्या विपत्त आयी है? मैंने पूछा।'
'अम्मा बोली "पशुपतिनाथ ने मुनादी करादी है कि सूर्यग्रहण के वक़्त कोई भी घर से निकले, तुम जल्दी से भीतर आजाओ अगर कहीं किसी ने बाहर देख लिया तो मुश्किल हो जायेगी, वैसे भी पशुपतिनाथ से बैर करके तुमने अच्छा नहीं किया। ' क्या में मंगली को इन्द्र की हवस का शिकार होने देता'?...

... मंगली ने कालिका को ऊपर से नीचे तक गौर से देखा कितनी सुगढ़ है और रुप भी कितना सुन्दर निखर रहा हैकरवट बदल कर काली को मंगली ने बाँहों में भर लिया, उत्तर-पूरब में अभिजित नक्षत्र उगा रहा था थोडी ही देर में हंसा तारा मंडल और बाज भी आजायेंगेसुरजा ने कहा था की अगर मुझे कभी कुछ हो जाये तो अपने टोले को लेकर हंसा की उड़ान की दिशा में दक्षिण दिशा में चले जानावैसे तो हंस अब वापस उत्तर में अपने देश हिमालय के पार जारहे हैं पर अब उत्तर उसके लिए मौत की दिशा हैद्रेको के ध्रुव तारे थुबान से जितना दूर वे जा सकें, की वह क्षितिज के नीचे छुप जाई यही हम सबके के लिए अच्छा होगासारे लोग आर्यों के जुल्मों से तंग आकर गाँव शहर छोड़ कर दक्कन की ओर पलायन कर रहें हैंये आर्य हमें दस्यु-दानव कह कर पुकारते हैं! कौन हमारे नगरों गाओं को उजाड़ रहा है? कौन हमारे बांधों को नहरों को तहस-नहस कर रहा है? यज्ञ के नाम पशु मानवों की बली देता है? कौन दिन रात देखे बिना जिस किसी भी औरत का हरण कर अपनी हवस का शिकार बनाता है? हर समय सोम के नशे में धुत्त रहने वाले आर्य! फिर कौन दस्यु दानव हुआ ? हम या वे! सोचते सोचते मंगली की कई रातों से जगी थकी ऑंखें कब झपक गयीं पता ही नहीं चला
नदी के पत्थरों के खिसकाने की आवाज से अचानक मंगली की नींद टूट गयी, ह्ड़बड़ा कर उठी तो कालिका की नींद भी टूट गयी और डर के मारे रोने लगी। 'कौन है वहाँ'? सहमी सी आवाज में मंगली ने पूछामंगली ने कालिका के मुँह पर हाथ रखते हुए, उंगली से चुप रहने का इशारा किया! दमकी ने आवाज दी 'हम हैं'। आने पर देखा त्रेपन और धतूरी भी साथ में हैं। मंगली ने कालिका से कहा 'उठ अब चलने का वक़्त हो गया '। कालिका ने काली के तीनों पिल्लों को कपडे की थैली में रखा लिया और काली का पट्टा अपने हाथ में थाम लिया। मंगली ने सुरजा का त्रिफली बरछा त्रिपन को थमा, बाक़ी सामान सहेजने लगी, जिसमे कुछ अपने और कालिका के कपड़े बीजों की छोटीं-छोटीं टोकरियाँ बूटियों और जड़ियों की पोटलियाँ थीं। त्रिपन से पूछा 'बाक़ी सामन जुटा लिया है'? 'हाँ आग जलाने का पत्थर-कील, मछली पकड़ने का फंदा, खोदने जोतने की कुदाली, हँसिया सब जमा है। दमकी बोली 'कढाई बुनाई का सामान सारा मेरे पास है। धतूरी बोली 'मैंने भी जरूरत का नमक जमा और सबसे खास आर्यों की घुड़साल से देखो ये क्या लाई हूँ'! सबने देखा तो काले रंग की घोड़ों की ढेर साड़ी नालें थीं, ' इनका क्या करेंगे' दमकी ने पूछा 'हमारे पास घोड़े तो हैं नहीं'? 'जहाँ हम जारहे हैं वहां घोड़ों का कोई काम नहीं है, ये नालें इनकी नयी धातु के हथियार बनाने के काम आयेंगी, जिनके बल पर इन्द्र हर युद्ध आसानी से जीत जाता है। इस लौह के बरछे ताम्बे और लकडी की ढालों को कमल के पत्तों की तरह चीर देतें हैं। 'अम्मा हम कहाँ जा रहे हैं'? क्या तुम इन्द्र से डरती हो! कालिका ने आश्चर्य से पूछा। 'इन्द्र तो मेरे तीरों की बौछार से एक जंगली सूअर की तरह बिछ जाएगा, पर मुझे डर है उन लोगों से जो चंद कौड़िओं के उसके दास बनने के लिए तैयार बैठे हैं. वह हमारी औरतों को अपनी दासी तो बना लेगा पर अपनी पत्नी नहीं। हमारे व्यापारी तो उसके वज्र के भय से उसके सामने अपना धन ही नहीं अपना सम्मान भी निछावर करने में नहीं शर्माते हैं। पर तू ये सब बातें अभी नहीं समझ पायेगी, इतना जान लो की जंगली कुत्तों गिरोह के सामने शेरनी भी अपने शावकों साथ होने पर, लड़ने की बजाय, बचा कर निकाल लेजाती है। इसी में ही समझदारी है और बहादुरी भी। 'मैं किसी से नहीं डरती जब काली और तुम मेरे साथ हो' कालिका ने गर्व से कहा ' बस मेरे लिए भी एक बरछा बना दो तिरपन बाबा'। 'जरूर बना दूंगा पर पहले बरछे जितनी बड़ी तो होजाओ' तिरपन ने हँसते हुए कहा। हमें यहाँ से ज़रा जल्दी ही निकलना होगा मंगली, इन्द्र के आदमी कभी भी हमें खोजते हुए यहाँ तक पहुंच सकते हैं। 'हम कहाँ जारहे हैं?

2 comments:

Anonymous said...

what happened next in the story.....can u please mail me in my mailbox: komaljuly1@rediffmail.com

Sahil Sahore said...


Visited & Read First Time, But Narration Is Binding... Insightful too

Rgrdz

Sahil Sahore